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Ardhanareeswara Stotram (अर्धनारीश्वर स्तोत्र) in Sanskrit Hindi

Ardhanari Nateshwara Stotram in Hindi-

।अथ अर्धनारीश्वर स्तोत्रम्।

चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवयै च नमः शिवाय।।1।।

जिनका आधा शरीर चम्पा के फूलों जैसा है और शेष आधा शरीर कर्पूर के जैसे गोरे शंकर जी का है. जो [आधे शारीर पर] जटा धारण किये हुए हैं और जिनके [आधे शरीर पर] सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं, ऐसे पार्वती और भगवान शंकर को प्रनाम है.

कस्तूरिकाकुङ्कुमचर्चितायै चितारजःपुञ्जविचर्चिताय।
कॄतस्मरायै विकॄतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।2।।

जिन पार्वती के शरीर पर कस्तूरी और कुमकुम का लेप लगा हुआ है और भगवान शंकर के शरीर पर चिता की भस्म लगी हुई है. पार्वती कामदेव को जिलाने वाली है और महादेव उसे नष्ट करने वाले हैं. ऐसे पार्वती और शंकर भगवान को मेरा नमस्कार है.

चलत्क्वणत्कङ्कणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणिनूपुराय।
हेमाङ्गदायै भुजगाङ्गादाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।3।।

जो [पार्वती] पैरों में चमकती हुई पायल को धारण किये हुए है, जो [भगवान् शिव] पैरों में सर्पराज की पायल पहने हैं, जो [पार्वती] सोने के बाजूबंद पहने हुए हैं और जो [शिव] भुजा में सर्प धारण किये हैं उन शिव को नमस्कार है और शिवा (शिवा अर्थात पार्वती) को नमस्कार है.

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपङ्केरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।4।।

जिन [पार्वती] के बड़े नेत्र खिले हुए नीले कमल के समान हैं, जिन [शिव] के नेत्र खिले हुए कमल के समान बड़े हैं, जिन [पार्वती] के दो (सम या Even) नेत्र हैं और जिनके तीन (विषम या Odd) नेत्र हैं, उन शिवा को नमस्कार है और उन शिव को नमस्कार है.

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालाङ्कितकन्धराय।
दिव्यांबरायै च दिगंबराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।5।।

जिन [पार्वती] के केश (बाल) मन्दार के फूलों से सुसज्जित हैं, जो [शिव] मुंडों की माला पहने हुए हैं, जिन [पार्वती] वस्त्र दिव्य हैं और जो [शिव] दिगंबर [आकाश को वस्त्र के रूप में धारण करने वाले अर्थात निर्वस्त्र] हैं उन शिवा और शिव को नमस्कार है.

अंभोधरश्यामळकुन्तळायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।6।।

जिन [पार्वती] के केश जल से भरे हुए काले बादलों के समान हैं, जिन [शिव] की जटा में बिजली की चमक जैसी लालिमा है, जिन [पार्वती] का कोई ईश्वर नहीं है (निरीश्वर अर्थात परम स्वतंत्र) और जो [शिव] समस्त संसार के ईश्वर हैं उन शिवा को नमस्कार है और उन शिव को नमस्कार है.

प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।7।।

जिन [पार्वती] का नृत्य सृष्टि का निर्माण करता है, जिन [शिव] का नृत्य सृष्टि-प्रपंच के संहार का प्रतीक है, जिन [पार्वती] जो [पार्वती] संसार की माता हैं और जो संसार के एकमेव (एकमात्र) पिता हैं उन शिवा को नमस्कार है और उन शिव को नमस्कार है.

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।8।।

जो [पार्वती] चमकते हुए रत्न जड़ित कुंडल पहने हैं, जो फुफकार करते हुए नाग को आभूषण के रूप में धारण किये हैं, जो [पार्वती] शिव से समन्वित हैं और जो [शिव] शिवा से समन्वित हैं उन शिवा और शिव को नमस्कार हैं.

फलश्रुति:
एतत्पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात्सदा तस्य समस्तसिद्धिः।।

यह आठ श्लोकों का अष्टक (स्तोत्र) अभीष्ट फल की प्राप्ति कराने वाला है. जो भी इसका भक्तिपूर्वक पाठ करता है वह संसार में सम्मानित होता है और लम्बी आयु तक जीता है. वह अनंत काल तक सौभाग्य और समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है.

।इति श्री अर्धनारीश्वर स्तोत्रम् संपूर्णम् ।

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