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Shri Suktam in Sanskrit, Hindi श्री सूक्त अर्थ सहित

श्री सूक्त 'पञ्च सूक्तों' में से एक है, ( पंच सूक्त - पुरुष सूक्तम, विष्णु सूक्तम, श्री सूक्तम, भू सूक्तम, नील सूक्तम )। देवी महालक्ष्मी को समर्पित यह स्तोत्र ऋग्वेद से लिया गया है। देवी की कृपा से सुख प्राप्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। यहाँ श्री सूक्त हिंदी और english में अर्थ सहित ( with meaning ) दिया गया है।

यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि श्री सूक्त तीन प्रकार से मिलते हैं जिनमे कुछ श्लोकों का और इनकी रचना के समय का अंतर है। प्रमुख रूप से इस स्तोत्र के तीन प्रकार हैं -
1. पहले प्रकार में श्लोक १-१५  तक है, यह प्राचीन और मूल स्तोत्र है।
2. दूसरे प्रकार में 1-29 श्लोक हैं।
3. तीसरा प्रकार श्री सूक्त का नवीनतम रूप है जिसमे लगभग 37 श्लोक हैं।

इस page पर श्री सूक्तम का दूसरा प्रकार दिया गया है जो Divyajivan.org से लिया गया है।

Shri Suktam in hindi -

।। अथ श्री सूक्तम् ।। 

 ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम।
यस्या हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषताम ।३।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्दा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।४।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।५।

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः।६।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मिराष्ट्रेऽस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।७।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाश्याम्यहम।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात।८।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरी सर्वभूतानांतामिहोपह्वये श्रियम।९।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।१०।

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम।११।

आपः सृजन्तु स्नि-ग्धानि चिक्लीत वस् में गृहे।
निच देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।१२।

आर्द्रां पुष्करिणीम पुष्टिंपिँगलां पद्ममालिनीं।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१३।

आर्द्रां यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीं।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह।१४।

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्र्वान् विन्देयं पुरुषान्हम्।१५।

यः शुचि प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्।१६।

पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम।१७।

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।१८।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयिसन्निधत्सव।१९।

पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम्।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मन्तं करोतु मे।२०।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो वृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु मे।२१।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः।२२।

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृत पुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तम जपत्।२३।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्य शोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यं।२४।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधव प्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्।२५।

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।२६।।

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः।२७।

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्सव।२८।

श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु।
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजन्ति सद्यः सवितो विदध्यून्।२९।

श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति।
सन्ततमृचा वषट्कृत्यं संधत्तं संधीयते प्रजया पशुभिः य एवं वेद।३०।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात।३१।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

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Comments

  1. You have Newark to Ahmedabad

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  2. श्लोक १६: शुद्ध रूप "पञ्चदशर्चं" अथवा "पञ्चदशार्चं" (पञ्चदश +अर्चं)

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